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फिर कभी

. Saturday, August 27, 2011

आज नजरें मिलाना चाहा तो दिल ने कहा ‘फिर कभी'

थोड़ा बारिश में भीगना चाहा तो दिल न कहाँ ‘फिर कभी'

दो टूक बातें करना चाहा तो दिल ने कहा ‘फिर कभी'

 

रोना चाहा तो दिल ने कहा ‘फिर कभी’

यादों की सुनसान गलियों ने आज दोबारा दस्तक दी,

उन दस्तकों को  सुनना चाहा ,तो दिल ने कहा ‘फिर कभी'

उसे भूलना भी चाहा तो दिल ने कहा ‘फिर कभी'

 

सन्नाटे की आवाज़ से जब खुद को ढूंडना चाहा

तो दिल ने कहा ‘फिर कभी'

अँधेरी राहों पर अकेला चलना चाहा

तो दिल ने कहा ‘फिर कभी'

किसी ने आवाज़ दी ,पीछे मुड कर देखना भी चाहा

तो दिल ने कहा फिर कभी

घेहरे धुंद की चादर से, बाहर एक नज़र फिराना भी चाहा

तो दिल ने कहा फिर कभी

 

अपनी बातों को समझाना चाहा

तो दिल ने कहा फिर कभी

आज वो कहानी फिर दोहराना चाहा

तो दिल ने कहा फिर कभी

घर वापस भी जाना चाहा

तो दिल ने कहा फिर कभी

 

अब तो उनकी याद भी अगर आ जाए तो

खुद ही मुस्कुरा कर कह देते हैं ‘फिर कभी'

1 comments:

anurag said...

mast hai...really nice

 

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