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अंजान होंसले

. Wednesday, June 13, 2012

मंजिल भी उन्ही की थी, रस्ते भी उन्ही के थे

मैं सिर्फ अकेला था , बाकी सब  कारवा भी उन्ही का था

साथ चलने की चाहत भी उन्ही की थी, साथ छोड़ने का फैसला भी उन्ही का था

मेरी आँखों में सपने भी उन्ही के थे, उन सपनो में रंगी कहानियाँ भी उन्ही की थी

बारिश के बूंदों के छाओं तले वो नयी खुशबू भी उन्ही की थी

गली के नुक्कड़ पे खड़े होके चाय की चुस्कियों के बीच यादें भी उन्ही के थी

मंजिल भी उन्ही की थी, रस्ते भी उन्ही के थे

मैं सिर्फ अकेला था , बाकी सब  कारवा भी उन्ही का था

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