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अम्मा - by Crazy Devil

. Monday, September 24, 2012

It happens; At times you feel your life in resonance with some lines. There is a friend of mine, a young writer and an a young poet. I have generally been very fond of his lines , just for the matter of fact that his lines are simple, raw and takes me to old by lanes of my past. A few days ago he wrote this and while I was reading it fluctuating visions of past pounded heavy in my heart. I am sure this would resonate to some of you. For more of his writings visit - Bhak Sala

अम्मा,
जब देर रात तक बिजली जाने पर,
तुम पंखा हौंका करती थी

जब बिना exhaust और बिन AC के
तुम तपती गर्मी...
चूल्हा चौका करती थी
मैं तुम्हे शहर दिखाना चाहता था


अम्मा,
जब बस 14 इंच के black and white पर,
सारा घर,
रंगोली देख देख कर रंगता था
जब सुरभि के एक एक ख़त पर
चाँद शरिखे,
सबका चेहरा टंगता था
मैं तुम्हे शहर दिखाना चाहता था


आज बड़ी बड़ी दीवारें हैं
ऊँची Buildings, AC वाली कारें हैं
मैं बालकोनी में चढ़कर
शहर का ज़हर, अकेले पी लेता हूँ.
झूट तुम्हे कहता हूँ कि, पेट भरा है
सच तो है कि
हर रात Maggie पर भूखा ही जी लेता हूँ


आज वो बारिश वाली सड़क नहीं है,
जहाँ कपडे गंदे करके, मैं घर हँसते हँसते आता था
अम्मा आज वो खाट नहीं है,
जिसपर मैं तौलिया लिपटे
superman बनकर रोटी तरकारी खाता था
इस LCD TV में black and white रंग नहीं हैं
अम्मा,
तुम शहर कभी मत आना

Courtesy - Crazy Devil

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