दोपहर के २ बज चुके हैं. जहां आधी दुनिया कहाँ से कहाँ पहुच चुकी थी , ऑफिस में बैठे ये साहब अपने लैपटॉप की स्क्रीन में झांकते हुए वो बस यह सोच रहे थे की क्या 15 साल पहले इन्हें इस बात का अंदाजा था की ज़िन्दगी ऐसी होगी? आज भी याद करतें है वो पुराने दिन तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. भला बताईये, कितने ही लोग ऐसे होंगे जो ज़मीन पर नाचते हुए लट्टू को अपने हथेलियों पर उठाकर नचा सकते हैं. पतंगबाजी का कभी official इतिहास लिखा गया तो gurantee देता हूँ की इन जनाब का नाम किसी न किसी पन्ने पर नाम ज़रूर आएगा. और आज देखिये, AC cubicle में बैठे ये साहब Excel में data pivot करके summary sheets बना रहे हैं. अभी तो conditional formatting करनी बाकी ही है. Important Deliverable है. Client को आज ही चाहिए. चाहे भले ही उसको पूरा करने में इनके और घड़ी, दोनों के बारह क्यूँ न बजे. फिर देर रात एक Conference Call भी है. खैर एक और Friday Client के नाम.
उस वक़्त हर सोमवार को होने वाले टेस्ट से डर लगता था. पेपर में कोई सवाल छूट जाए तो अगले दो period तक कोहराम मचा रहता था. Physics के पेपर दिखा दिए जाएँ तो २ महीनो तक किसी के मुख से एक आवाज़ ना निकले. किसी ने सबसे मुश्किल सवाल हल कर दिए तो गर्व से ऐसे चलता मानो Mt. Everest चडकर आया है . और अब देखिये, ज़िन्दगी एक सवाल बन चुकी है, पर कभी दो मिनट कोशिश नहीं करी जवाब ढूंढने की. खैर कोई बात नहीं, आइये SAS और Excel के सवालों के जवाब दें.
आसपास के लोग इनकी बुद्धिमता की तारीफ़ करेंगे. इनकी Facebook की Wall पर तारीफों की पुल बांधेंगे. 15-20 likes और साहब खुश. भूल जायेंगे की किसी सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहे थे आप. खैर यह पोस्ट भी Facebook पर शेयर हो जाएगा. चंद बुद्धिजीवियों के likes आ जायेंगे. कुछ बालिकाएं कमेन्ट भी कर देंगी. जनाब सातवे आसमान पर. शाम की दारु पार्टी के लिए एक विषय मिल जाएगा discussion के लिए. कल hangover के बाद कुछ याद न रहेगा और ज़िन्दगी का सवाल फिर से कहीं किसी कोने में खो जाएगा.
फ़िलहाल चलिए एक कप coffee ले आयें.
और कहीं कोई ये ना बोल दे "अरे ये तो मैंने लिखा था" इसलिए इसके नीचे ADAPTED चिपका दें. इंसान भी आजकल "बौद्धिक संपदा अधिकार" का काफी इस्तेमाल करने लगा है. अरे वही अधिकार जिसे आप अंग्रेजी में "Intellectual Property Right" कहते हैं.
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